छत्तीसगढ़ राज्य अपने विविधताओं के वजह से विश्व में पहचाना जाता है यहां की जनजातीय क्षेत्र के लोग अपने लोक नृत्य की वजह से भी जाने जाते हैं छत्तीसगढ़ में कई तरह के लोक नृत्य प्रचलित है इनमें स्त्री पुरुष सामान्य रूप से भाग लेते हैं छत्तीसगढ़ की रचनाओं में नदी, नाले, पर्वत, घाटियां तथा सुंदर धरती की कल्पना होती है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य व छत्तीसगढ़ के लोकगीत काफी ज्यादा पसंद किए जाते हैं।
इस पोस्ट में हम छत्तीसगढ़ राज्य के लोक नृत्य और यहां के लोकगीत के बारे में विस्तार से जानें छत्तीसगढ़ राज्य में कौन कौन से लोक नृत्य प्रसिद्ध है और छत्तीसगढ़ की अलग-अलग क्षेत्र में कौन कौन थे जातीय नृत्य धार्मिक अनुष्ठान और ग्रामीण हर्षोल्लास के साथ भी मनाए जाते हैं। अगर हम बात करें छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य के तो इनमें कई तरह की देवी देवताओं के साथ-साथ देव पितरों की पूजा अर्चना के बाद लोग जीवन प्रकृति के साहचर्य के साथ घुला हुआ देखने को आपको मिल सकता है।
- अटारी नृत्य – बघेलखंड के भूमिया आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है।
- ककसार/ककसाड़ – मुरिया जनजाति द्वारा साल में एक बार किया जाता है।
- करमा नृत्य – कई जनजातियों द्वारा यह नृत्य किया जाता है।
- कोल दहका नृत्य – कोल जनजाति का पारंपरिक नृत्य है। इसे कोलहाई नाच भी कहते है।
- गेंड़ी/गेड़ी नृत्य – मुरिया जनजाति का विशेष नृत्य है।
- गौर नृत्य – माड़िया जनजाति का अत्यंत लोकप्रिय नृत्य है।
- गौरा नृत्य – गौरा छत्तीसगढ़ की मड़िया जनजाति का यह बहुत ही प्रसिद्ध लोक नृत्य है यह छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि विश्व के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में एक है। एल्विन ने तो इसे देश का सर्वोत्कृष्ट नृत्य माना है गौरा नृत्य को लोग बहुत पसंद करते हैं।
- चंदेनी नृत्य – पुरुष द्वारा विशेष वेश-भूषा में नृत्य पस्तुत किया जाता है।
- ढांढल नृत्य – कोरकू जनजाति में पचलित नृत्य है।
- डंडारी नृत्य – डंडारी नृत्य प्रतिवर्ष होली के अवसर पर आयोजित होता है नृत्य के पहले दिन में गाँव के बीच एक चबूतरा बनाकर उस पर एक सेलम स्तंभ स्थापित किया जाता है।
- थापटी नृत्य – कोरकू जनजाति का परंपरागत नृत्य है।
- दमकच / डोमकच – डोमकच या दमकच नृत्य कोरवा (korwa) आदिवासी युवक-युवतियों के द्वारा किया जाता है। यह नृत्य प्राय: यह नृत्य विवाह आदि के शुभ अवसर पर किया जाता है। यही कारण है कि इस नृत्य को “विवाह नृत्य” भी कहा जाता है।
- दशहरा नृत्य – बैगा जनजाति द्वारा विजयादशमी से प्रारम्भ किया जाता है।
- दोरला नृत्य – दोरला जनजाति द्वारा पर्व-त्यौहार, विवाह आदि अवसरों पर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है।
- ददरिया नृत्य – ददरिया नृत्य छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध प्रणय नृत्य है यह एक गीतमय नृत्य है जिसमें युवक गीत गाते हुए युवतियों को आकर्षित करने के लिए नृत्य करते हैं छत्तीसगढ़ में यह काफी लोकप्रिय है खास कर ये लोक नृत्य युवाओं में बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं।
- पन्थी नाच – सतनामी समाज का पारंपरिक नृत्य है।
- परघोनी नृत्य – बैगा जनजाति का विवाह नृत्य है।
- परब नृत्य – धुरवा जनजाति के लोगो के द्वारा किया जाता है।
- परधौनी नृत्य – छत्तीसगढ़ में बैगा जनजाति का यह बहुत लोकप्रिय नृत्य है जो कि विवाह के अवसर पर बारात पहुँचने के साथ किया जाता है वर पक्ष वाले उस नृत्य में हाथी बनाकर नृत्य करते हैं।
- फाग नृत्य – गोंड और बैगा जनजाति के स्त्री-पुरुष द्वारा होली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है।
- बार नृत्य – छत्तीसगढ़ कंवर समुदाय के द्वारा की जाती है। इस समूह नृत्य की खासियत है कि पांच वर्षो के अंतराल में माघ के महीने में इसका आयोजन किया जाता है।
- बिलमा नृत्य – गोंड व बैगा जनजाति के स्त्री-पुरुष द्वारा दशहरा के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है।
- भड़म नृत्य – इसे भढ़नी या भंगम नृत्य भी कहता है भरिया जनजाति के द्वारा विवाह के अवसर पर किया जाता है।
- माओ पाटा – माओ पाटा नृत्य मुरिया/मुड़िया जनजातियों के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में नाटक के भी लगभग सभी तत्व विद्यमान हैं। माओपाटा का आयोजन घोटुल के प्रांगण में किया जाता है जिसमे युवक और युवतियां सम्मिलित होते हैं।
- राई नृत्य – बुंदेलखंड में पचलित विवाह एवं बच्चे के जन्म पर किया जाने वाला नृत्य है।
- राउतनाचा – दीपावली के अवसर पर राउत समुदाय के द्वारा किया जाता है।
- सरहुल नृत्य – यह एक अनुष्ठानिक नृत्य है जिसे उरांव एवं मुण्डा जनजाति द्वारा किया जाता है।
- सुआ नृत्य – दीपावली से कुछ दिन पहले से छत्तीसगढ़ राज्य के अधिकतर ग्रामीण और शहरी इलाको में आपको सुवा नृत्य देखने को मिल जायेगा इनमे प्रमुख रूप से दीपावली की रात्रि तक महिलाओ और किशोरियो द्वारा सुवा नृत्य किया जाता है।
- सैतम नृत्य – यह भारिया जनजाति के महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
- सैला – शुद्धतः जनजातिय नृत्य है। इसे डण्डा नाच के नाम से भी जाना जाता है।
- हुलकी नृत्य – मुरिया जनजाति के स्त्री-पुरुष द्वारा।
प्रमुख छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- करमा गीत – नृत्य आदिवासियों को अत्याधिक प्रिय है। करमा गीतों का मुख्य स्वर शृंगार है।
- गौरा गीत – माँ दुर्गा की स्तुति में गाये जाने वाले लोकगीत हैं, जो नवरात्रि के समय गाया जाता है।
- जवाँरा गीत – छत्तीसगढ़ में दुर्गा माता की आरती, विभिन्न देवताओं की स्तुति आदि का वर्णन होता है।
- डण्डा गीत – यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध नृत्य गीत है। यह प्रतिवर्ष पूर्णिमा से पूर्व गाया जाता है ।
- ददरिया गीत – ददरिया गीतों को छत्तीसगढ़ी लोक गीत का राजा कहा जाता है। इन गीतों में सौन्दर्य व शृंगार की बहुलता होती
- दहकी गीत – छत्तीसगढ़ में होली के अवसर पर अश्लीलतापूर्ण परिहास में गाया जाने वाला लोक-गीत है।
- देवार गीत – देवार जनजातिनकी प्रमुख गीत है जिसमे गुजरी, सीताराम नायक, यसमत, ओडनि व बीरम गीत शामिल है।
- नचौनी गीत – नारी की विरह-वेदना, संयोग-वियोग के रसों से भरपूर प्रसिद्ध लोकगीत है।
- नागमत गीत – नागदेव के गुण-गान व नाग-दंश से सुरक्षा की प्रार्थना में गाये जाने वाला लोकगीत है, जो नाग पंचमी के अवसर पर गाया जाता है।
- पंथी गीत – छत्तीसगढ़ में सतनाम सम्प्रदाय के लोगों द्वारा अध्याय-महिमा से रचा-बसा प्रसिद्ध नृत्य गीत है।
- बाँस गीत – राऊत जाति का प्रमुख गीत है।
- बैना गीत – छत्तीसगढ़ में तंत्र साधना से संबंधित लोकगीत जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है।
- भड़ौनी गीत – विवाह के समय हँसी मजाक को मूल लक्ष्य बनाकर बनाया गया लोकगीत है।
- भोजली गीत – इसमें तांत का बना एक वाद्य बनाकर नारियों द्वारा गीत गाया जाता है।
- राऊत गीत – छत्तीसगढ़ी यादव समाज में दस दिनों तक चलने वाला प्रसिद्ध नृत्य गीत है।
- रेला गीत – मुरिया जनजाति का प्रसिद्ध गीत है।
- लेंजा गीत – बस्तर के आदिवासी बाहुल क्षेत्र का लोकगीत है।
- लोरिक चन्दौनी – छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में, लोक कथाओं पर आधारित यह लोकप्रिय गीत है।
- सुआ गीत – प्रमुखत: गोंड आदिवासी स्त्रियों का नृत्य गीत है।
- सेवा गीत – छत्तीसगढ़ में चेचक को माता माना जाता है। इसकी शांति के लिये माता सेवा गीत गाया जाता है।
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